यात्रा व्रतांत
16 अक्टूबर 2018
23 घण्टे 3 लोग 1 कार 770 किमी
सरदारशहर से देशनोक से रामदेवरा वापस सरदारशहर
ये यात्रा व्रतांत बहुत लंबा होने वाला था क्योंकि यात्रा लम्बी होने वाली थी जो जैसलमेर से तनोट माता तक सोच रखा था ।क्योंकि ये सिर्फ रामदेवरा तक ही गए है तो हम इसे एक भाग में समेट रहे है।
इस यात्रा व्रतांत में मैं देशनोक और रामदेवरा के बारे में नही बताऊँगा यहाँ सिर्फ इन जगहों के बारे में बाते होगी।जो इस दोनो जगहों के बारे में नही
जानते मेरे ख्याल से उन्हें गूगल सर्च कर लेना चाहिए । ये जितने बड़े ऐतिहासिक धार्मिक स्थल है उस के लिए लिखने बैठू तो पूरा दिन निकल जायेगा । इस लिए गूगल कर लीजिये।
हा तो मैं बता रहा था कि हम ने 15 को हम ने तय किया कि रात को 3 बजे चलेगे लेकिन नींद 2 बजे खुल गयी इस लिये नहा कर निकले चूंकि सरदारशहर श्री डूंगरगढ़ रोड़ बन रही हैं तो रतनगढ की तरफ गाड़ी मोड़ ली । वहां से सीधा बीकानेर चौराहे से देशनोक पहुँचे ।
कमाल की बात थी कि ये पहली बार थी जब मैने लाखो की संख्या में इतने सारे श्रद्धालुओं को देखा था । यकीनन बहुत भीड़ थी बाद में पता चला की सप्तमी को माँ करणी का जन्मदिन था । तो गाड़ी को पार्किंग में लगाया और लगभग 6 बजे लाइन में लगे लाइन बहुत लंबी थी जिस का नतीजा ये निकाला कि माँ के दर्शन हुवे तब 10 बज चुके थे।
कुछ जानकारिया बताता चलु की माँ करणी की पूजा अर्चना वहाँ के चारण परिवारों द्वारा की जाती है । वहाँ पर श्री डूंगरगढ का एक बैड बहुत ही सुंदर 9 दिन अपनी सेवा देता है । वहाँ माँ के भजनों पर भक्तगन झुमैत रहते है। साथ ही देखनोक गांव के लगभग हजारो कार्यकर्ता 9 दिन अपनी निस्वार्थ सेवा माँ के धाम में देते है।
यहाँ से हमे वापस बीकानेर जाना था जहाँ से NH 11 पकड़ कर रामदेवरा जाना था लेकिन किसी ने सुझाया की कोलायत तक सिंगल रोड़ है आप वहाँ से चले जायें । और यही पर गलती हो गयीं लगभग 30 km की उस रोड की अंतिम 10 km इतनी टूटी फूटी थी कि हमारी हालात खराब हो गयीं । चूंकि हम ने सुबह से कुछ भी नही खाया था इस लिए मामा जी और छोटे भाई की हालत खराब ज्यादा ख़राब हो गयी ।
जैसे तैसे करके हम कोलायत पहुँचे ओर nh 11 पर पहुँच कर एक ढाबे का रुख किया । हालांकि खाना मैने भारत के कोने कोने में खा कर देखा है लेकिन कभी इतनी बड़ी रोटी नही खायी लगभग 2 फुट बड़ी रोटी ने हम तीनों का पेट एक रोटी में भर दिया ।क्या स्वादिष्ट खाना था हम ने कहा भैया बटर नही लगाओगे तो बोला बटर नही है देसी घी है और लगभग 100 ml की एक कीमा नुमि बर्तन में घी भर के लाया और चारो तरफ बस घी ही घी हो गया ।खाना खा कर जब रवाना हुवे तो मामाजी की तबियत खराब हो गयी उन का बीपी बढ़ गया। जब हम रामदेवरा पहुचे तो 3 बज गए वहाँ पर मामाजी को एक डॉक्टर को दिखाया ।
2 इन्जेक्शन 4 गोली ओर 2 घण्टे के आराम के बाद मामाजी तैयार थे हम ने दर्शन किये ज्यादा भीड़ नही थी आराम से बाबा के दर्शन हुवे ।
बोलो रामसा पीर की जय
उस के बाद मंदिर के पीछे बने तालाब को देखा और देखते ही मन घिन्न से गया कि बाबा के उस तालाब की ऐसी हालत कर दी थी मन रुआंसा हो गया । हम कितने घटिया लोग हैं ये वो तालाब चीख चीख कर रहा है।
मंदिर के पुजारियों ने भी जबरजस्त लूट मचा रखी है । आप जहाँ पर भी माथा टेकेंगे आप को पैसे चढ़ाने के लिए कहेगे । ओर तरीका इतना घटिया होता है कि ऐसे सुंदर धाम पर जहाँ मन को सुकून मिलता है वहाँ पर कोफ्त होने लगी।
मंदिर कमेटी इतना चढ़ावा जब लेती है तो क्यों नही उस के 1 %को कम से कम सफाई पर तो लगाए।
राजस्थान की शान ऐसे ही धार्मिक स्थलों से है अगर आज हमने अपना नजरिया नही बदला तो नजरिया बदलना तो दूर ये सोच ही समाप्त हो जाएगी और हमे क्या मतलब वाली सोच रहेगी।
सच कहू तो बिल्कुल अच्छा नही लगा लेकिन इसी बीच दो बूढे युगल के संगीत की जुगल बंदी ने दिल खुश कर दिया लेकिन तालाब ओर ये युगल अपनी हालत के वो किस्से बयान कर रहे थे जिस को सिर्फ मैं पढ़ पा रहा था।
वहाँ से निकले तो 6 बज चुके थे दिन में जहाँ लगभग दूरी छोटे भाई ने तय की थी वही रात में गाड़ी मैं चला रहा था ।
फलौदी में सेव ओर दूध लिया ताकी रात को नींद ना आया ।जब श्रीडूंगरगढ़ पहुचे तो 12 बज चुके थे । पवन होटल पर खाना खाया और सरदारशहर की तरफ गाड़ी मोड़ दी और 2 बजे सरदारशहर पहुँचे ।
तो बताये कैसे लगा ये छोटा सा यात्रा व्रतांत
जाते जाते बोलिये जय माँ करणी
जय रामसा पीर
जय जय म्हारो राजस्थान
16 अक्टूबर 2018
23 घण्टे 3 लोग 1 कार 770 किमी
सरदारशहर से देशनोक से रामदेवरा वापस सरदारशहर
ये यात्रा व्रतांत बहुत लंबा होने वाला था क्योंकि यात्रा लम्बी होने वाली थी जो जैसलमेर से तनोट माता तक सोच रखा था ।क्योंकि ये सिर्फ रामदेवरा तक ही गए है तो हम इसे एक भाग में समेट रहे है।
इस यात्रा व्रतांत में मैं देशनोक और रामदेवरा के बारे में नही बताऊँगा यहाँ सिर्फ इन जगहों के बारे में बाते होगी।जो इस दोनो जगहों के बारे में नही
जानते मेरे ख्याल से उन्हें गूगल सर्च कर लेना चाहिए । ये जितने बड़े ऐतिहासिक धार्मिक स्थल है उस के लिए लिखने बैठू तो पूरा दिन निकल जायेगा । इस लिए गूगल कर लीजिये।
हा तो मैं बता रहा था कि हम ने 15 को हम ने तय किया कि रात को 3 बजे चलेगे लेकिन नींद 2 बजे खुल गयी इस लिये नहा कर निकले चूंकि सरदारशहर श्री डूंगरगढ़ रोड़ बन रही हैं तो रतनगढ की तरफ गाड़ी मोड़ ली । वहां से सीधा बीकानेर चौराहे से देशनोक पहुँचे ।
कमाल की बात थी कि ये पहली बार थी जब मैने लाखो की संख्या में इतने सारे श्रद्धालुओं को देखा था । यकीनन बहुत भीड़ थी बाद में पता चला की सप्तमी को माँ करणी का जन्मदिन था । तो गाड़ी को पार्किंग में लगाया और लगभग 6 बजे लाइन में लगे लाइन बहुत लंबी थी जिस का नतीजा ये निकाला कि माँ के दर्शन हुवे तब 10 बज चुके थे।
कुछ जानकारिया बताता चलु की माँ करणी की पूजा अर्चना वहाँ के चारण परिवारों द्वारा की जाती है । वहाँ पर श्री डूंगरगढ का एक बैड बहुत ही सुंदर 9 दिन अपनी सेवा देता है । वहाँ माँ के भजनों पर भक्तगन झुमैत रहते है। साथ ही देखनोक गांव के लगभग हजारो कार्यकर्ता 9 दिन अपनी निस्वार्थ सेवा माँ के धाम में देते है।
यहाँ से हमे वापस बीकानेर जाना था जहाँ से NH 11 पकड़ कर रामदेवरा जाना था लेकिन किसी ने सुझाया की कोलायत तक सिंगल रोड़ है आप वहाँ से चले जायें । और यही पर गलती हो गयीं लगभग 30 km की उस रोड की अंतिम 10 km इतनी टूटी फूटी थी कि हमारी हालात खराब हो गयीं । चूंकि हम ने सुबह से कुछ भी नही खाया था इस लिए मामा जी और छोटे भाई की हालत खराब ज्यादा ख़राब हो गयी ।
जैसे तैसे करके हम कोलायत पहुँचे ओर nh 11 पर पहुँच कर एक ढाबे का रुख किया । हालांकि खाना मैने भारत के कोने कोने में खा कर देखा है लेकिन कभी इतनी बड़ी रोटी नही खायी लगभग 2 फुट बड़ी रोटी ने हम तीनों का पेट एक रोटी में भर दिया ।क्या स्वादिष्ट खाना था हम ने कहा भैया बटर नही लगाओगे तो बोला बटर नही है देसी घी है और लगभग 100 ml की एक कीमा नुमि बर्तन में घी भर के लाया और चारो तरफ बस घी ही घी हो गया ।खाना खा कर जब रवाना हुवे तो मामाजी की तबियत खराब हो गयी उन का बीपी बढ़ गया। जब हम रामदेवरा पहुचे तो 3 बज गए वहाँ पर मामाजी को एक डॉक्टर को दिखाया ।
2 इन्जेक्शन 4 गोली ओर 2 घण्टे के आराम के बाद मामाजी तैयार थे हम ने दर्शन किये ज्यादा भीड़ नही थी आराम से बाबा के दर्शन हुवे ।
बोलो रामसा पीर की जय
उस के बाद मंदिर के पीछे बने तालाब को देखा और देखते ही मन घिन्न से गया कि बाबा के उस तालाब की ऐसी हालत कर दी थी मन रुआंसा हो गया । हम कितने घटिया लोग हैं ये वो तालाब चीख चीख कर रहा है।
मंदिर के पुजारियों ने भी जबरजस्त लूट मचा रखी है । आप जहाँ पर भी माथा टेकेंगे आप को पैसे चढ़ाने के लिए कहेगे । ओर तरीका इतना घटिया होता है कि ऐसे सुंदर धाम पर जहाँ मन को सुकून मिलता है वहाँ पर कोफ्त होने लगी।
मंदिर कमेटी इतना चढ़ावा जब लेती है तो क्यों नही उस के 1 %को कम से कम सफाई पर तो लगाए।
राजस्थान की शान ऐसे ही धार्मिक स्थलों से है अगर आज हमने अपना नजरिया नही बदला तो नजरिया बदलना तो दूर ये सोच ही समाप्त हो जाएगी और हमे क्या मतलब वाली सोच रहेगी।
सच कहू तो बिल्कुल अच्छा नही लगा लेकिन इसी बीच दो बूढे युगल के संगीत की जुगल बंदी ने दिल खुश कर दिया लेकिन तालाब ओर ये युगल अपनी हालत के वो किस्से बयान कर रहे थे जिस को सिर्फ मैं पढ़ पा रहा था।
वहाँ से निकले तो 6 बज चुके थे दिन में जहाँ लगभग दूरी छोटे भाई ने तय की थी वही रात में गाड़ी मैं चला रहा था ।
फलौदी में सेव ओर दूध लिया ताकी रात को नींद ना आया ।जब श्रीडूंगरगढ़ पहुचे तो 12 बज चुके थे । पवन होटल पर खाना खाया और सरदारशहर की तरफ गाड़ी मोड़ दी और 2 बजे सरदारशहर पहुँचे ।
तो बताये कैसे लगा ये छोटा सा यात्रा व्रतांत
जाते जाते बोलिये जय माँ करणी
जय रामसा पीर
जय जय म्हारो राजस्थान
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