मणिमहेश यात्रा भाग-2
रात को पंजाब पहुचने के उपरांत रात्री विश्राम किया तथा सुबह भोर में इनोवा गाड़ी आ गई । मै,श्यामसुंदर मामाजी और उन के मित्र पूनम जी और ओम जी अपने पुत्र कर्ण के साथ रवाना हुवे। लगभग एक घण्टे की यात्रा के बाद हम फिरोजपुर पहुचे है।जहा पर प्रेम जी यहाँ पहुचे।जिन का एक बहुत बढ़िया रेस्टोरेंट है।उन्होंने हमें जम कर छोले भटूरे खिलाये।कुछ भूख ज्यादा थी और कुछ इतने स्वादिस्ट थे की मै तो भुक्कड़ की तरह बस टूट पड़ा।
वहां से नास्ते के बाद प्रेम जी को भी साथ ले लिया ।इस के साथ हम ड्राइवर सहित कुल सात लोग यात्रा के लिए निकल गए ।दोपहर तक पठानकोट पहुचे। यहाँ तक पूरा शानदार हाइवे था। यहाँ की रोड़े देख कर पंजाब सरकार की तारीफ तो बनती है।गाड़ी ऐसे चलती है जैसे मक्खन।यहाँ रोड़ की तारीफ मै इस लिए कर रहा हु क्योंकि अब यहाँ से शुरू होता है हिमाचल और साथ ही शुरू होता है सड़क की बदहाली का सफर। चूँकि इस से पहले भी मै कई बार पहाड़ी क्षेत्र में गया हूं तो मै यकीन से कह सकता हु के अगर आप यहाँ से गुजरे के तो आप का रोम रोम गालियां देगा ।
पठानकोट से भरमौर के लिये जब रास्ता शुरू होता है तो शुरुआत होती है महादेव की सेवा में लगे लंगरों की। ऐसे ही एक लगर पर हम रुके और भोजन किया । आप को बता दू की इस पूरी यात्रा में आप को बेहतरीन भोजन की कही कमी नहीं होगी ।पठानकोट से लेकर मणिमहेश तक सैकड़ो भण्डारे मिल जायेंगे जो बकायदा सड़क के किनारे आप को रुकायेगे ही नहीं वरन आप को कुछ ना कुछ खिला कर भेजेगे। महादेव की इस पावन भूमी पर ऐसी सेवा सत्कार देख कर ऐसा लगता है कि सचमुच किसी देव नगरी में पहुच गए है ।
भंडारो के साथ साथ यहाँ शुरू होती है गाड़ी की हिमालय पर चढाई ।तंग रास्ते तीखे घुमावदार मोड़ और साथ ही खड़ी चढाई । गाड़ी और गाड़ी में बैठे लोगो की जान निकल देती है ।गाड़ी में ऐसा लगता है जैसे किसी मेले के डोलर झूले में झूल रहे है । यहाँ सब पर ऑक्सीजन की कमी का असर दिखने लगता है । गाड़ी में सभी को चक्कर आने लगते है ।
पठानकोट से लगभग 220 किमी है किमी है चम्बा और चम्बा से 82 किमी की दुरी पर है भरमौर और भरमौर से लगभग 17 किमी की दुरी पर स्थित है हड़सर जहा से 13 किमी की पैदल यात्रा है ।
आप की जानकारी के लिए बता दू की अगर आप अपने किसी निजी वाहन से जा रहे है। तो अपने साथ एक अनुभवी ड्राइवर को साथ ले ले। या बेहतर होगा किसी टेक्सी को हायर कर ले । इस का एक मोटा कारण है कि चम्बा के बाद कही पार्किग नहीं है और जहा से आप पैदल चढाई शुरू करते है यानी की हडसर वहां कोई पार्किग ना होने की वजह से आप की गाड़ी तंग सड़क के किनारे खड़ी करनी पड़ती है । यानी पीछे से आप की गाड़ी भोले भरोसे है । दूसरी बात यह की मणिमहेश से अगर आप वापस आते वख्त हैलीकोप्टर से आते है तो आप को वो भरमौर में उतरेगा मतलब आप को गाड़ी लेने 17 किमी वापस जाना पड़ सकता है । तो बेहतर होगा की या तो आप गाड़ी चम्बा में छोड़ दे और आगे बस से जाये या एक अनुभवी ड्राइवर ले ले। या सब से बेहतर है आप पठानकोट से बस में जाये ओर पठानकोट तो आप जैसे चाहे वेसे पहुच सकते है यानि की बस या ट्रेन ।
हा तो मै बता रहा था की चम्बा तक पहुचते पहुचते हमें साय के लगभाग 4 बज गए । ये सफर बहुत थका देने वाला था । यहां पहुच कर मेरे साथ एक जोरदार घटना घटी ।हुआ यू की मै गाड़ी से निकाला तो लगा के कही हल्का हो आये । तो साहब चारो तरफ देखा तो पहाड़ ही पहाड़ और ऊपर से बहती नदी । जो पूरे पहाड़ को भिगो रही थी । बाकि जो जगह बची उस पर झाड़िया ही झाड़िया तो अब समस्या कहा जाये । तो मैने लोकल से पूछा की भैया को जुगाड़ बताओ तो उस ने कहा भैया खुले में जाना पड़ेगा उस ने एक पगडंडी की तरफ इशारा कर दिया जो एक पहाड़ पर तेज धार वाली नदी के साथ बनी है । अब मै बोतल लेके चल पड़ा और कुछ देर चलने के बाद खुली जगह देख के बेठ गया । पर जब मैं वापस आने के लिए जैसे ही थोड़ा चला ।मेरा पैर फिसल गया और मैने एक झाड़ी को पकड़ा ।और जैसे ही पकड़ा मेरे हाथ में दिखाई ना देने वाले सैकड़ो जहरीले कांटे चुभ गए । और मेरे हाथ को जैसे हजारो मधुमखियों ने काट लिया हो। मै चिल्लाकर जैसे ही भागा तो पहाड़ पर मेरे ब्रेक फेल ।वो तो भोले का शुक्र है कि मैं बच गया ।
मुझे बाद में पता चला की बेटा ये पहाड़ है जितने सुन्दर ये दिखते है ।उतने ही जालिम है। थोड़ी सी लापरवाही तुम्हारी जान पर आ सकती है । खेर उन काटो की एक खास बात और थी की पानी लगने पर ये और दर्द करेगे । तो जब जब मेरे हाथ पर पानी पड़ा तो अगले दो दिन तक उन काटो ने वो पहाड़ वाली बात भूलने नहीं दी । #manimahesh
क्रमशः
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रात को पंजाब पहुचने के उपरांत रात्री विश्राम किया तथा सुबह भोर में इनोवा गाड़ी आ गई । मै,श्यामसुंदर मामाजी और उन के मित्र पूनम जी और ओम जी अपने पुत्र कर्ण के साथ रवाना हुवे। लगभग एक घण्टे की यात्रा के बाद हम फिरोजपुर पहुचे है।जहा पर प्रेम जी यहाँ पहुचे।जिन का एक बहुत बढ़िया रेस्टोरेंट है।उन्होंने हमें जम कर छोले भटूरे खिलाये।कुछ भूख ज्यादा थी और कुछ इतने स्वादिस्ट थे की मै तो भुक्कड़ की तरह बस टूट पड़ा।
वहां से नास्ते के बाद प्रेम जी को भी साथ ले लिया ।इस के साथ हम ड्राइवर सहित कुल सात लोग यात्रा के लिए निकल गए ।दोपहर तक पठानकोट पहुचे। यहाँ तक पूरा शानदार हाइवे था। यहाँ की रोड़े देख कर पंजाब सरकार की तारीफ तो बनती है।गाड़ी ऐसे चलती है जैसे मक्खन।यहाँ रोड़ की तारीफ मै इस लिए कर रहा हु क्योंकि अब यहाँ से शुरू होता है हिमाचल और साथ ही शुरू होता है सड़क की बदहाली का सफर। चूँकि इस से पहले भी मै कई बार पहाड़ी क्षेत्र में गया हूं तो मै यकीन से कह सकता हु के अगर आप यहाँ से गुजरे के तो आप का रोम रोम गालियां देगा ।
पठानकोट से भरमौर के लिये जब रास्ता शुरू होता है तो शुरुआत होती है महादेव की सेवा में लगे लंगरों की। ऐसे ही एक लगर पर हम रुके और भोजन किया । आप को बता दू की इस पूरी यात्रा में आप को बेहतरीन भोजन की कही कमी नहीं होगी ।पठानकोट से लेकर मणिमहेश तक सैकड़ो भण्डारे मिल जायेंगे जो बकायदा सड़क के किनारे आप को रुकायेगे ही नहीं वरन आप को कुछ ना कुछ खिला कर भेजेगे। महादेव की इस पावन भूमी पर ऐसी सेवा सत्कार देख कर ऐसा लगता है कि सचमुच किसी देव नगरी में पहुच गए है ।
भंडारो के साथ साथ यहाँ शुरू होती है गाड़ी की हिमालय पर चढाई ।तंग रास्ते तीखे घुमावदार मोड़ और साथ ही खड़ी चढाई । गाड़ी और गाड़ी में बैठे लोगो की जान निकल देती है ।गाड़ी में ऐसा लगता है जैसे किसी मेले के डोलर झूले में झूल रहे है । यहाँ सब पर ऑक्सीजन की कमी का असर दिखने लगता है । गाड़ी में सभी को चक्कर आने लगते है ।
पठानकोट से लगभग 220 किमी है किमी है चम्बा और चम्बा से 82 किमी की दुरी पर है भरमौर और भरमौर से लगभग 17 किमी की दुरी पर स्थित है हड़सर जहा से 13 किमी की पैदल यात्रा है ।
आप की जानकारी के लिए बता दू की अगर आप अपने किसी निजी वाहन से जा रहे है। तो अपने साथ एक अनुभवी ड्राइवर को साथ ले ले। या बेहतर होगा किसी टेक्सी को हायर कर ले । इस का एक मोटा कारण है कि चम्बा के बाद कही पार्किग नहीं है और जहा से आप पैदल चढाई शुरू करते है यानी की हडसर वहां कोई पार्किग ना होने की वजह से आप की गाड़ी तंग सड़क के किनारे खड़ी करनी पड़ती है । यानी पीछे से आप की गाड़ी भोले भरोसे है । दूसरी बात यह की मणिमहेश से अगर आप वापस आते वख्त हैलीकोप्टर से आते है तो आप को वो भरमौर में उतरेगा मतलब आप को गाड़ी लेने 17 किमी वापस जाना पड़ सकता है । तो बेहतर होगा की या तो आप गाड़ी चम्बा में छोड़ दे और आगे बस से जाये या एक अनुभवी ड्राइवर ले ले। या सब से बेहतर है आप पठानकोट से बस में जाये ओर पठानकोट तो आप जैसे चाहे वेसे पहुच सकते है यानि की बस या ट्रेन ।
हा तो मै बता रहा था की चम्बा तक पहुचते पहुचते हमें साय के लगभाग 4 बज गए । ये सफर बहुत थका देने वाला था । यहां पहुच कर मेरे साथ एक जोरदार घटना घटी ।हुआ यू की मै गाड़ी से निकाला तो लगा के कही हल्का हो आये । तो साहब चारो तरफ देखा तो पहाड़ ही पहाड़ और ऊपर से बहती नदी । जो पूरे पहाड़ को भिगो रही थी । बाकि जो जगह बची उस पर झाड़िया ही झाड़िया तो अब समस्या कहा जाये । तो मैने लोकल से पूछा की भैया को जुगाड़ बताओ तो उस ने कहा भैया खुले में जाना पड़ेगा उस ने एक पगडंडी की तरफ इशारा कर दिया जो एक पहाड़ पर तेज धार वाली नदी के साथ बनी है । अब मै बोतल लेके चल पड़ा और कुछ देर चलने के बाद खुली जगह देख के बेठ गया । पर जब मैं वापस आने के लिए जैसे ही थोड़ा चला ।मेरा पैर फिसल गया और मैने एक झाड़ी को पकड़ा ।और जैसे ही पकड़ा मेरे हाथ में दिखाई ना देने वाले सैकड़ो जहरीले कांटे चुभ गए । और मेरे हाथ को जैसे हजारो मधुमखियों ने काट लिया हो। मै चिल्लाकर जैसे ही भागा तो पहाड़ पर मेरे ब्रेक फेल ।वो तो भोले का शुक्र है कि मैं बच गया ।
मुझे बाद में पता चला की बेटा ये पहाड़ है जितने सुन्दर ये दिखते है ।उतने ही जालिम है। थोड़ी सी लापरवाही तुम्हारी जान पर आ सकती है । खेर उन काटो की एक खास बात और थी की पानी लगने पर ये और दर्द करेगे । तो जब जब मेरे हाथ पर पानी पड़ा तो अगले दो दिन तक उन काटो ने वो पहाड़ वाली बात भूलने नहीं दी । #manimahesh
क्रमशः
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