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मणिमहेश यात्रा भाग 3

मणिमहेश यात्रा-3
     कहते है असल जिंदगी का फलसफा किताबो से नहीं वरन घुमक्कड़ी सीखा जाती है।इस लिए वख्त रोना छोड़िये और बिना किसी सोच विचार के निकल पड़िये अपना बैग उठा के।
मेरा यकीन मानिए एक बार घुमकड़ी की लत लग गई तो जिन्दगी का नजरिया बदल जायेगा।
               हां तो मै बता रहा था हम चम्बा से निकल कर भरमौर के रास्ते जैसे जैसे बढ़ रहे रहे थे तो पहाड़ो की ऊँचाई  बढ़ रही थी घाटियों की गहराई भी।ज्यो ज्यो अँधेरा घिर रहा। गाड़ी की रफ्तार भी अब कम होने लगी थी। अँधेरी रात में गाड़ी के इंजन से कही ज्यादा नदी के पानी का शोर सुनाई दे रहा था। रात के लगभग 8 बजे थे । तभी पीछे से साइरन की आवाज करता एक मंत्री का काफिला  बहुत तेजी से पीछे से आ रहा था। हमने उस को जैसे ही साइड दी हमारे ड्राइवर ने समझदारी दिखाई और उस काफिले के पीछे गाड़ी दौड़ा दी । अब गाड़ी की रफ्तार 70 km/h के लगभग हो गई थी।  और लगभग 40 मिनट में हम भरमौर पहुच गए ।
      यहाँ पर पहाड़ी पर लगभग 7 km की ऊँचाई पर स्थित है माँ ब्राह्मणी का मंदिर इस यात्रा का एक नियम यह है कि आप को मणिमहेश की यात्रा से पहले  इस मंदिर में जाना पड़ता है । तभी यात्रा सफल मानी जाती है।यह बात हमें बाद में पता जब हम वापस आये। खैर जब हम भरमौर पहुचे रात के 8:30 बज चुके थे।  और अभी भी हडसर  17 किमी दूर था ।जहाँ से हमें यात्रा करनी थी। तो हम भरमौर में नहीं रुके और रात के लगभग 9:30 बजे हमारा हडसर पहुचाना हुआ।
             यहाँ पर जैसे ही पहुचे बारिश शुरू हो गई।हम सब भूखे तो थे ही इस लिए  गाड़ी को किनारे लगाया  और वहां पर भंडारे में खाना खाया। और वही पर 100 रुपये एक आदमी के हिसाब से कमरा लिया और सब ने सोने की तैयारी की ।रात दो बजे के लगभग प्रेम जी को बुखार आ गया । उन्हें नींद नहीं आयी ।मै रात को कई बार उठता हु तो जब जब मै उठा तो वो एक ही बात कहते यार नीद नहीं आ रही है चलो चलते है चढाई शुरू करते है । मै उन को कहता यार रात को अँधेरे में चल कर पहाड़ से गिरना थोड़े ही है। और मैं सो जाता । मुझे मालूम था इन को हल्का बुखार है । इस लिए इन्हें नींद नहीं आ रही । पर मै भी क्या कर सकता था ना तो हम जरुरी दवाईया साथ लाये थे और ना ही वहां रात को कोई मेडिकल था और अगर था भी तो वो भण्डारे वालो की सेवा थी  जो सुबह मिलती ।
         ख़ैर सुबह लगभग 5 बजे हम लोग उठे तो प्रेंम जी की हालत खराब ।वो कहने लगे आप लोग जाओ मै नहीं चला सकता । उन की हालत सचमुछ ख़राब थी। मैं और ओम जी नीचे गए सामने भंडारे पर चाय बन रही थी एक बोतल में हमने चाय डलवाई और कुछ गिलास लेकर मै ऊपर आया और पीछे पीछे ओम जी भी आ गए कुछ दवाईया लेकर फिर प्रेम जी को कुछ चाय बिस्किट के साथ हमने  दवाई दी और नहा कर चढाई आरम्भ की।
            एक दरवाजा बना है जहाँ लगभग 30 सीढिया है जहाँ से चढ़ाई प्रारंभ होती है  उस के ठीक बाद पगडंडी शुरू हो जाती है जिस की अधिकतम चौड़ाई 5 फिट और न्यूतम आधा फिट । हा आधा फिट और सुरक्षा के नाम पर भोले बाबा का नाम है । बोल बम बम
           यहाँ से लगभग 5 km पर है ढांचों जहाँ मेरा रुकने का प्रोग्राम था । मेरा इस लिए के जब से हमने यात्रा आरम्भ की थी तब से सब पीछे रह गए थे।मेरे साथ बस ओम जी का बेटा कर्ण था। लगभग 10  बजे हमने 3km की बहुत खतरनाक चढाई पूरी कर ली  यहाँ मै रुक गया। थोड़ी देर बाद श्याम मामा जी भी आ गए और उन के कुछ देर बाद सभी पहुच गए ।
          यहाँ तक आते आते प्रेम जी ने होट लटका दिए बोले खच्चर कर लो ।हमने कहा थोड़ा तो चलो कुछ तो हिम्मत करो। फिर मामा जी ने कहा कि यार तेरी मामी ने पराठे और लहसुन की चटनी डाली हुई है । इन को खाले तो मेरे अकेला का वजन तुम सब में बंट जायेगा । हमने कहा बात तो सही है ।और कुछ बड़े पत्थर  देख कर  बेठ गए और हम एक दिन पहले बने पराठे खाये । पराठे थे तो ठंडे लेकिन स्वाद लग रहे थे । साथ में लहसुन की चटनी । हम मारवाड़ियों को और चाहिए ही क्या। मैने 4 पराठे चेप लिए उस पर डिब्बे वाला ज्यूस । वो बात अलग है कि उस के बाद मेरी हालात खराब ही गई ।
      अगले भाग के लिए कल तक का इंतजार करिये । कल का भाग  काफी रोचक होने वाला है आप के लिए ही  वरण मेरे लिए भी ।  आज के लिए शुभ रात्रि बोल बम । #manimahesh

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