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मणिमहेश यात्रा भाग-4

मणिमहेश यात्रा भाग-4
        नास्ता करने के बाद मेरी हालात खराब हो गई ।पेट भारी हो गया और उल्टी आ गई । मै चूँकि फिर से अकेला और सब से आगे था ।तो मै रुक गया और  सब का  इंतजार करने लगा।
लेकिन 15 मिनट बाद भी जब वो लोग नहीं आये तो मुझे लगा की शायद वो आगे निकल गए क्योंकि कही कही मै शॉर्टकट ले रहा था तो हो सकता है वो सीधे रास्ते से आगे निकाला गए । मै फिर से चल दिया अब मेरी तबियत फिर से ठीक थी लेकिन दांचो  जो 5km पर है वहां पहुँचते पहुँचते मेरे बायें पैर की नस में दर्द शुरू हो गया । लेकिन मेरी रफ्तार में कमी नहीं आयी।या यु कहे की मै जान बुझ कर तेज चलता रहा । वो इस लिए की अगर आप के पैर में कही कोई नस का दर्द  शुरू ही गया है तो आप रुके नहीं बल्कि उसी जगह ज्यादा जोर दे । चूँकि इस से पहले भी मैंने कई लम्बी पैदल यात्राएँ की है तो इस ट्रिक को मै भली भांति जानता हूं कि दर्द का तोड़ दर्द ही होता है।
        जब मै ढांचों पंहुचा तब  मैं थक गया और  आराम करने की सोची इसलिए वहां लगे एक भंडारे में जाकर मैंने मूव मांगी।तो उन्होंने मुझे एक स्प्रे दिया जो मैंने अपने पैर पर लगाया और आराम करने लगा ।लेकिन जैसे ही मुझे 15 मिनट वहां गुजरे मै देखता हूं कि ओम जी सब के साथ खच्चर पर चढ़े आ रहे है ।
          उन को देख कर मेरा माथा ख़राब । दोस्तों मुझे शुरू से ही पहाड़ो ने आकर्षित किया है । मै हमेशा चाहता था की किसी पहाड़ की चोटी पर मै भी कभी चढ़ाई करू। ये मेरा पहला मौका था जब मेरी ये ख्वाइश पूरी हो रही थी। लेकिन जब सब को खचरो  पर आते हुए देखा तो मुझे मेरा ये सपना टूटता हुआ दिखा मै ये उचाई मेरे दम पर हासिल करू।सब ने बहुत जिद की खच्चर लेने की लेकिन मैं अपनी जिद पर अड़ा रहा ।आख़िरकार उन्होंने कहा की तुम अपना बैग हमें दे दो ।और मैने वही अपना बैग दे दिया लेकिन यही मुझ से बहुत बड़ी गलती हो गई ।मतलब की मेरे उस बैग में मेरा मोबाईल पर्स और मेरा कोट था जो मैं उन्हें दे चुका था । मुझे इस गलती का बाद में अहसाह हुआ जब मेरी जान पर बन आयी।इस के बारे में आगे लिखुगा।
               दांचो से जैसे ही निकलते है  एक पगडंडी बाये और घूम कर सीधे  पहाड़ पर चढती है जिस की ऊँचाई है लगभग 2 km। वहां से पहाड़ी के समानांतर वो रास्ता जाता है। जिस में मामीजी गए ।वही दूसरी तरफ एक शॉर्टकट है जिस में सीधा पहाड़ चढ़ाना पड़ता है। वो डिस्कवरी में बियर नहीं चढता बिलकुल वैसे ही।
          मुझे उस पहाड़ को देख कर लगा जैसे मैं यही तो चाहता था। और मैं जैसे लगभग दौड़ कर उस पहाड़ की पहली चट्टान तक पंहुचा ।और मैं जैसे चढता ही गया।एक के बाद एक चट्टान।उस पहाड़ के समानांतर एक बहुत बड़ा झरना बहुत तेज आवाज कर रहा था।तकरीबन आधा घटा चढ़ने के बाद मुझे चक्कर आने लगे मै समझ गया । कि मेरे शरीर में गुलकोज की कमी हो गई है मैंने पिछले 2 घटे से ना पानी पिया और जो खाया था उस की भी उल्टी कर दी।अब मुझे कुछ खाना चाहिए ।लेकिन तभी मुझे होश आया की कैसे खाऊ मेरे पास तो पैसे ही नहीं है। मैने दूर तक नजर दौड़ाई कोई भण्डार नहीं ।सिर्फ दुकाने थी जो तंबू में लगी थी। हालांकि भंडारे भी तम्बू में ही लगते है लेकिन वहां dj बजता है जो मुझे दूर तक नहीं सुनाई दे रहा था । मेरे चेहरे पर निराशा थकान और अफसोस के भाव एक साथ घिर आये। मै फिर भी चलने की कोशिश करता रहा । कुछ दूरी पर पहाड़ की चोटी पर एक तब्बू लगा था जहाँ मै जैसे लगभग गिर गया । और कुछ देर तक ज वहां पड़ा रहा आखो के आगे अँधेरा छा गया ।
                  जब आँख खुली मुझे एक आदमी पानी दे रहा था। मैंने उस का धन्यवाद दिया खुद को संभाला और  फिर से चलने की कोशिश की लेकिन फिर वही हालात ।अब क्या किया जाये। किसी दुकान से अगर कोई टॉफी भी मिल जाती तो मुझे पता था कि मुझ में जान आ जाती ।पर पैसे थे नहीं और उस वक्त माँगना मुझे जैसे जिल्लत लग रहा था । मुमै बेबस हो गया । मै फिर से गिर पड़ा इस बार वहां लोग इक्कठा हो गए । मुझे सहारा दिया और पूछा क्या हुआ। मैने कहा मुझे चक्कर आ रहे है ।तभी एक भाई ने मुझे निम्बू में  नमक लगा के दिया । मैने जैसे ही उसे चूसा लगा जैसे शरीर में  जान आ गई। फिर किसी ने मुझे दो तीन टॉफी दी मैने वो मुह में डाली और उठा चल दिया । इतनी ऊंचाई पर आने पर शरीर  थक गया था लेकिन थोड़ी दूरी पर चलने पर भोले का जैसे चमत्कार हुआ। सामने भण्डार था । मैंने हिम्मत करके वहां पंहुचा और सीधे दाल भात खाने लगा। बाबा की आशीष हुई वही आराम करने के लिए पीछे जगह थी वहां लेट गया और लगभग 1 बजे दोपहर को यात्रा पुनः आरम्भ की ।जय भोले बाबा की। #manimahesh
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